एक बार एक पिता अपनेे 22 साल के बेटे के साथ स्टेशन पर पहुंचा। ट्रेन में जाकर बैठे तो पिता से बेटे ने अजीब-सी ज़िद की। लडक़ा कह रहा था,"मुझे विंडो सीट पर बैठना है...मुझे विंडो सीट पर बैठना है।"
जो लोग आस-पास बैठे थे वे हैरत सेे उन्हें देख रहे थे। बेटे को पिता ने कहा,"जरूर बैठो" और पिता बेटे की बगल वाली सीट पर बैठ गया। सामने वाली महिला अपने परिवार के साथ बैठी थी और वह 22 साल के लडक़े की बातें सुन रही थी और मन ही मन कुछ सोच रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसका मन हो कि पिता से कुछ पूछे। परन्तु उसे सही समय नहीं मिल रहा था। सभी अपनी जगह पर बैठ गए और कुछ समय बाद ट्रेन चल पड़ी।
वह लडक़ा अजीब-सी हरकतें करने लगा। उसने अपने पिता से कहा,"देखो पिता जी! गाडिय़ां पीछे छूट रही हैं।" पिता चुप... बेटा फिर बोला,"पापा देखो... पेड़ भी पीछे छूट रहे हैं।" पिता फिर चुप... वह महिला बहुत कुछ मन ही मन सोचती जा रही थी। वह कुछ देर बाद फिर बोला,"पापा देखो ना... बादल भी पीछे छूट रहे हैं।" महिला को उस लडक़े की बात गहरी सोच में डालती जा रही थी। वह सोच रही थी कि हो सकता है बाप-बेटा आपस में मज़ाक कर रहे हों। कुछ देर बाद उस महिला ने अपने बैग में से कुछ खाने के लिए निकाला, और जो सामने वाले व्यक्ति थे, उनको ऑफर किया,"आप भी कुछ लीजीए।" इस सब के बीच उस महिला ने सोचा कि यहीं सही समय है उस लडक़े के पिता से उसके बारे में बात करने का। आखिर उसने पूछ ही लिया,"एक बात कहूँ भाई साहिब, अगर आप बुरा न माने, आप अपने बेटे को कहीं दिखा क्यों नहीं लेते? एक अच्छे डॉक्टर हैं जिन्हें मैं जानती हूँ। अगर आप कहें तो मैं आपकी बात करवा दूँ।" अब जो लडक़े के पिता ने कहा, वह कारा ध्यान देने लायक है। उन्होंने कहा,"इसे डॉक्टर को ही दिखा कर आ रहे हैं। यह बचपन से ही अंधा था। आज ही इसे आँखें मिली हैं।"
यह छोटी-सी कहानी बहुत बड़ी बात सिखाती है कि दुनिया में हर किसी की अपनी कहानी होती है। जरूरी नहीं कि जो हम सोचते हैं वही उसकी कहानी हो।
जैनब (बीवोक-सैम दूसरा)
जो लोग आस-पास बैठे थे वे हैरत सेे उन्हें देख रहे थे। बेटे को पिता ने कहा,"जरूर बैठो" और पिता बेटे की बगल वाली सीट पर बैठ गया। सामने वाली महिला अपने परिवार के साथ बैठी थी और वह 22 साल के लडक़े की बातें सुन रही थी और मन ही मन कुछ सोच रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसका मन हो कि पिता से कुछ पूछे। परन्तु उसे सही समय नहीं मिल रहा था। सभी अपनी जगह पर बैठ गए और कुछ समय बाद ट्रेन चल पड़ी।
वह लडक़ा अजीब-सी हरकतें करने लगा। उसने अपने पिता से कहा,"देखो पिता जी! गाडिय़ां पीछे छूट रही हैं।" पिता चुप... बेटा फिर बोला,"पापा देखो... पेड़ भी पीछे छूट रहे हैं।" पिता फिर चुप... वह महिला बहुत कुछ मन ही मन सोचती जा रही थी। वह कुछ देर बाद फिर बोला,"पापा देखो ना... बादल भी पीछे छूट रहे हैं।" महिला को उस लडक़े की बात गहरी सोच में डालती जा रही थी। वह सोच रही थी कि हो सकता है बाप-बेटा आपस में मज़ाक कर रहे हों। कुछ देर बाद उस महिला ने अपने बैग में से कुछ खाने के लिए निकाला, और जो सामने वाले व्यक्ति थे, उनको ऑफर किया,"आप भी कुछ लीजीए।" इस सब के बीच उस महिला ने सोचा कि यहीं सही समय है उस लडक़े के पिता से उसके बारे में बात करने का। आखिर उसने पूछ ही लिया,"एक बात कहूँ भाई साहिब, अगर आप बुरा न माने, आप अपने बेटे को कहीं दिखा क्यों नहीं लेते? एक अच्छे डॉक्टर हैं जिन्हें मैं जानती हूँ। अगर आप कहें तो मैं आपकी बात करवा दूँ।" अब जो लडक़े के पिता ने कहा, वह कारा ध्यान देने लायक है। उन्होंने कहा,"इसे डॉक्टर को ही दिखा कर आ रहे हैं। यह बचपन से ही अंधा था। आज ही इसे आँखें मिली हैं।"
यह छोटी-सी कहानी बहुत बड़ी बात सिखाती है कि दुनिया में हर किसी की अपनी कहानी होती है। जरूरी नहीं कि जो हम सोचते हैं वही उसकी कहानी हो।
जैनब (बीवोक-सैम दूसरा)
Beautiful concept
ReplyDeleteDepth in story nice writing
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ReplyDeleteOutstanding...god bless...sandeep chahal
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