मेरी कोई जायदाद नहीं...
तन्हा बैठी थी एक दिन में अपने मकान में,
बना रहीं थी चिडिय़ा घोंसला छोटे से रोशनदान में,
पल भर में आती थी,पल भर में जाती थी।
तो अपनी चोंच में तिनके भर-भर लाती थी।
बना रही थी वो अपना घर एक न्यारा,
कोई तीन था ईंट उसका,कोई तिनका था गारा।
कड़ी मेहनत और लगन से बन गया बसेरा,
शाम होते ही चिडिय़ा ने लगा लिया उसमें डेरा।
कुछ दिन बाद मौसम बदला हवां के झोंके आने लगे,
छोटे से प्यारे-प्यारे दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे।
पंख निकल रहे थे दोनों के ,
पैरों पर करती थी खड़ा उन्हें।
इच्छु· है हर इन्सान, कोई ज़मीं के लिए, कोई आसमां के लिए,
कोशिश थी जारी उनकी ऊंची उड़ान के लिए।
देखती थी हर रोज़ उन्हें, जज़्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए,
पंख निकलने पर दोनों बच्चे मां को छोड़ उड़ गए।
चिडिय़ा से पूछा मैंने, तेरे बच्चे तूझे अकेला क्यों छोड़ गए,
तू तो थी मां उनकी, फिर ये रिश्ता तुझ से क्यूं तोड़ गए।
इन्सान के बच्चे अपने मां-बाप का घर कभी नहीं छोड़ते,
जिन्दगी भर अपने मां-बाप से रिश्ता नहीं तोड़ते।
चिडिय़ा बोली परिंदे और इन्सान में यहीं फरक है,
आज के इन्सान का बच्चा मोह और लालच के दरिया में गर्क है।
इन्सान का बच्चा पैदा होते ही हर चीज़ पर अपना हक जताता है,
बड़ा होने पर वो मां-बाप को कोर्ट कचहरी तक ले जाता है।
मैं कई बच्चों को जन्म दे चुकी हुँ,
और मुझे कोई करता याद नहीं।
मेरे बच्चें क्यूं रहेगें साथ मेरे,
क्योकि मेरी कोई जायदाद नहीं।
जैनब(बीजेएमसी-1 सैम)
Emotional but gud writing ....
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