सूरज की बाहों में चमकते वो बर्फिले पहाड़,
देखकर आ गई थी मन में सकून वाली बहार,
सुकून जो शब्दों में न हो सके बयान,
वो पेड़ो से बर्फ का गिरना,
मानो बालों से हाथों को सहलाना,
पहाड़ों के बीच में जाता वो रास्ता,
रास्ता... काश कभी न हो सके उसका खातमा,
वो ठंडी सी हवा से हुई ठुर-ठुरी,
गालों को छू कर बतलाती,
जैसे कायनात मिल गई हो पूरी,
वो नीले आसमान को इस कदर देखना,
जैसे किसी बच्चे का पूरा हो गया हो सपना।
अब दिल से निकलती है बस यहीं मन्नत
कि हर कोई महसूस कर पाए वो सकून वाली जन्नत
विनी
BJMC -4th sem
So nicely explained
ReplyDeleteBeautiful poem; really felt it..
ReplyDeleteso soothing
ReplyDeleteBeautiful lines
ReplyDeleteBeautiful lines with creative imagination ... keep it up dear😊
ReplyDeleteThank You very much, keep supporting :)
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