March 18, 2019

सकून वाली जन्नत


सूरज की बाहों में चमकते वो बर्फिले पहाड़,

देखकर आ गई थी मन में सकून वाली बहार,
सुकून जो शब्दों में न हो सके बयान,
वो पेड़ो से बर्फ का गिरना,
मानो बालों से हाथों को सहलाना,
पहाड़ों के बीच में जाता वो रास्ता,
रास्ता... काश कभी न हो सके उसका खातमा,
वो ठंडी सी हवा से हुई ठुर-ठुरी,
गालों को छू कर बतलाती,
जैसे कायनात मिल गई हो पूरी,
वो नीले आसमान को इस कदर देखना,
 जैसे किसी बच्चे का पूरा हो गया हो सपना।
अब दिल से निकलती है बस यहीं मन्नत
कि हर कोई महसूस कर पाए वो सकून वाली जन्नत

विनी
BJMC -4th sem

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