March 11, 2019

वो राज़

 मैं चार दवारें और उन चार दीवरों में गूंजती मेरी हिचकी। एक एक हिचकी मुझे मेरे बुर कर्मों का, मेरी ग़लतियों  का एहसास दिला रही थी जो बस उन चार दीवारों में दबी है। वो राज़ जो मैं ही जानता हूँ , वो  ग़लतियां जिनपर अभी तक पर्दा डला हुआ है।
मैं एक अव्वल दर्जे का शराबी जिसे घर पर खाना आया है या नहीं इसकी परवाह नहीं पर मेरी शराब की बोतल- मेरी ज़रूरत। यह ज़रूरत मेरी पत्नी और मेरे बच्चों की ज़रूरत से ज़्यादा प्यारी थी। मैं बस उतना कमाता था, जिससे खुद के लिए शराब की बोतल ला सकूं।

"आटा खत्म हो गया है, जी थैली मंगवानी है"
"पैसे नहीं है मेरे पास,खुद भी हाथ पैर हिला लिया करो, मेरे आगे हाथ फैलाने आता है।"

याद है आज भी उस दिन खाना नहीं बना था पर उस दिन भी मेरी शराब की बोतल आई थी। उनके दर्द तकलीफ सुनने पर कभी ध्यान नहीं दिया पर उनकी छोटी से छोटी गल्ती पर उन्हें गालियाँ देने से नहीं चूकता था मैं। यह सब मेरे स्वभाव में जुड़ गए। मेरा दिन चुपचाप शराब लाने से शुरू होता और दिन डलने से पहले मेरे ढलने से खत्म होता ।

"आयशा तूने पैसे निकाले मेरे पर्स से?"
"नहीं माँ मैंने नहीं निकाले।"
"पता नहीं कहाँ गये वो मैंने दवाई के लिए रखे थे।"
वो दिन जब पहली बार चोरी की मैंने, पैसे निकाले अपनी पत्नी के पर्स से ।  वो उस पूरी रात दर्द से कराह रही थी और  मैं अपनी शराब की बोतल के साथ आराम से सोया था।

राज भाग्य मेरा था या बुरा भाग्य मेरे परिवार का। अपनी ग़लतियों हमेशा ऊँची आवाज़ में छिपाई। अपनी पत्नी के चरित्र पर सवाल भी उठाए यह जानते हुए  वह निर्दोष है। अपनी बेटी को कोसा यह जानते हुए वह पढाई में अव्वल है। अपने बेटे को निक्कमा कहा यह जानते हुए घर में खाना उसी की वजह से है।

शायद जानता हूँ मैं, मेरे जाने से कोई दु:ख, कोई विलाप नहीं होगा क्योंकि आँसू सूखा दिए मैंने उनके।
अब मेरी गूंजती हिचकी शांत हो रही है, आज मेरे शरीर से आती दुर्गंध खत्म हो रही है। आज मेरी "मैं" , मेरा "अंह"खत्म हो रहा है।

पलक (BJMC-6sem)

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